Tuesday, October 26, 2010

अयोध्या को विवाद नहीं, विकास चाहिए

हर्षवर्धन त्रिपाठी
अयोध्या विवाद की वजह से केंद्र और राज्य सरकार ने इस छोटे से कस्बे जैसे शहर को छावनी बना रखा है। बावजूद इसके अयोध्या में औसतन 10 से 12 लाख रामभक्त रामलला के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। लंबी सुरक्षा प्रक्रिया और रामलला का इतने सालों से कनात के मंदिर में रहना भी उनकी आस्था कम नहीं कर पा रहा है, लेकिन सितंबर महीने में अयोध्या पर फैसले की तारीख ने ऐसी दहशत पैदी की कि सिर्फ डेढ़ लाख रामभक्त ही यहां आए।


अयोध्या की विवादित जमीन श्रीराम जन्मभूमि है या नहीं, इस पर 30 सितंबर को आए अदालती फैसले के बाद लगने लगा था कि देश सचमुच 1992 से काफी आगे बढ़ चुका है और आगे इस मुद्दे पर राजनीति की आशंका बिल्कुल नहीं है। परंतु अयोध्या के ऐतिहासिक फैसले के चंद घंटों बाद ही धीरे-धीरे फिर से यह साफ होने लगा कि देश भले ही 1992 से काफी आगे बढ़ चुका हो, लेकिन देश चलाने वाले या फिर इसे चलाने की चाह रखने वाले देश को इतना आगे जाने देने का मन नहीं बना पाए हैं। देर शाम तक धीरे-धीरे सद्भाव वाले बयान तीखे होने लगे और साफ दिखने लगा कि फिलहाल अयोध्या के लिए सीता के श्राप से मुक्त होने का समय नहीं आया है। यह किंवदंती है कि जब सीता को अयोध्या छोड़ना पड़ा तो उन्होंने कहा कि जो अयोध्यावासी उनके ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ नहीं खड़े हो रहे हैं, उन्हें समृद्धि-खुशहाली नहीं मिल सकेगी। अब बार-बार यह कहा जा रहा है कि देश 1992 से बहुत आगे निकल चुका है यानी अब धर्म और मंदिर-मस्जिद के नाम पर कुछ नहीं होगा और अब मुद्दा विकास का है, इसलिए नौजवान इस मुद्दे से भटकने को तैयार नही हैं। सच्चाई भी यही है कि अगर इसी नजरिए से अयोध्या को देखा जाए तो इस विवाद का हल भी आसानी से निकल सकता है और सीता के श्राप से अयोध्या को मुक्ति भी मिल सकती है।


अयोध्या विवाद की वजह से केंद्र और राज्य सरकार ने इस छोटे से कस्बे जैसे शहर को छावनी बना रखा है। बावजूद इसके अयोध्या में औसतन 10 से 12 लाख रामभक्त रामलला के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। लंबी सुरक्षा प्रक्रिया और रामलला का इतने सालों से कनात के मंदिर में रहना भी उनकी आस्था कम नहीं कर पा रहा है, लेकिन सितंबर महीने में अयोध्या पर फैसले की तारीख ने ऐसी दहशत पैदी की कि सिर्फ डेढ़ लाख रामभक्त ही यहां आए। यह वो धार्मिक भक्त हैं जिनकी राम पर आस्था है। रामलला विराजमान के अस्थाई मंदिर के प्रधान पुजारी महंत आचार्य सत्येंद्र दास बताते हैं कि सामान्य दिनों में रामलला के दर्शन को प्रतिदिन सात से आठ हजार लोग आते हैं और धार्मिक महत्व के दिनों में यह संख्या 15 हजार तक पहुंच जाती है। अब सिर्फ अगर इस एक आंकड़े से बात को आगे ले जाएं और मान लिया जाए कि औसतन दस लाख लोग भी आम दिनों में अयोध्या में रामजन्मभूमि के दर्शन करने आते हैं तो सितंबर में नौ लाख चालीस हजार भक्त अयोध्या नहीं आ पाए। इस तरह आने वाले एक रामभक्त का अयोध्या में खर्च यदि एक हजार रुपये भी मान लें तो सितंबर महीने के तनावपूर्ण माहौल में अयोध्या को करीब सौ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यह पैसा अयोध्या में फूल वाले से लेकर मंदिर के चढ़ावे तक में जाता। यह दस लाख भक्त भी वो हैं जो अयोध्या के आसपास के इलाकों से यानी उत्तर प्रदेश और उससे सटे राज्यों से आने वाले भक्तों की संख्या है। यह तब है, जब अभी अयोध्या को भारतीयों की पर्यटन स्थल सूची में बहुत नीचे जगह मिल पाती है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश का हिंदू भी जब धार्मिक यात्रा की योजना बनाता है तो उसकी सूची में वैष्णो देवी, तिरूपति बालाजी, शिरडी जैसे मंदिर ऊपर की सूची में रहते हैं।


बाहर के टूरिस्ट फिर चाहे वे धार्मिक यात्रा पर हों या सिर्फ भारत देखने की इच्छा रखने वाले लोग, इनकी लिस्ट में तो अयोध्या बिल्कुल ही नहीं रहता है। यह तब है जब इस देश में सर्व सहमति से अगर किसी एक भगवान पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों की बात हो तो वो संभवत: राम ही होंगे। जाहिर है रामराज्य के जरिये यानी राममंदिर के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों के जरिये अयोध्या के विकास की नई कहानी लिखी जा सकती है। राममंदिर के निर्माण के साथ इस शहर की तकदीर बदल सकती है और यह तकदीर सिर्फ हिंदुओं की नहीं बदलेगी।


रामलला के कपड़े पिछले दस सालों से अयोध्या में दोराही कुआं इलाके के सादिक अली सिलते हैं। वह कहते हैं कि रामलला को पहनाए जाने वाले कपड़े उनके हाथ के सिले हैं जो उनके लिए गर्व की बात है। हो भी क्यों नहीं, क्योंकि राम तो सबके हैं। शहर में खड़ाऊं बनाने से लेकर मूर्तियां बनाने तक के काम में हिंदुओं के साथ मुस्लिमों की भी अच्छी भागीदारी है। अयोध्या एक ऐसा शहर है जो हिंदुओं के लिए भगवान राम की जन्मभूमि की आस्था है तो अवध के नवाबों की विरासत भी यह शहर समेटे हैं। फिर भी यह शहर वीरान है तो इसकी सबसे बड़ी वजह मंदिर-मस्जिद विवाद ही है। अयोध्या में अवध शासकों के समय के 3000 से ज्यादा मंदिर हैं। निर्मोही, निरंजनी, निर्वाणी, उदासीन, वैष्णव सहित लगभग सभी अखाड़ों के यहां बड़े ठिकाने हैं।


शहर में दस हजार से ज्यादा साधु हमेशा रहते हैं। इतनी विविधता और बताने-दिखाने की समृद्ध विरासत होने के बावजूद इस शहर के लोग बेकारी और कम आमदनी की समस्या से आज जूझ रहे हैं। अयोध्या पहुंचने के रास्ते में कुछ चीनी मिलों की बदबू यहां आने वालों को भले ही बड़ी इंडस्ट्री के होने का भ्रम पैदा करे, लेकिन सच यही है कि अयोध्या में चीनी मिलों के अलावा कोई ऐसी इंडस्ट्री भी नहीं है जहां 100 लोगों को रोजगार मिला है। किसी बड़ी कंपनी का शोरूम भी नहीं है और न ही मनोरंजन का कोई साधन है। अयोध्या शहर का बाजार कस्बों से बदतर नहीं तो बेहतर भी नहीं है। शहर के लोगों की औसत महीने की कमाई 100 रुपए से ज्यादा नहीं है। देश में शायद ही किसी को अयोध्या का दशहरा या दिवाली याद आता हो।


लोगों को पता भी नहीं है कि अयोध्या में दिवाली या दशहरा मनाया भी जाता है या नहीं। मैं इलाहाबाद से हूं और वहां दशहरे के दस दिनों में शहर के हर मोहल्ले की चौकी देखने का अलग ही आकर्षण होता है। पूरा शहर उल्लास में होता है। दिल्ली से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली रामलीलाएं भी चर्चा की वजह बनती हैं, लेकिन दशहरा-दिवाली में भी इस शहर में उत्साह नहीं होता है, जबकि राम, रावण पर विजय हासिल करने के बाद लौटे तो इसी अयोध्या में ही थे। फिर अन्याय पर न्याय की विजय के इस महापर्व में इस शहर को जरा भी जगह क्यों नहीं मिल पा रहा है। अब सारा मामला यही है कि आस्था से भले ही कानूनी फैसले न हों और तथाकथित आस्थावान लोग भले ही आस्था और न्याय को पूरी तरह से ध्यान में रखकर दिए गए कानून के फैसले को मानने को तैयार न हों, लेकिन सच को तो मानना ही पड़ेगा। भले ही दोनों पक्षों की आस्था इस बारे में कुछ भी कहती हो। यहां सवाल उठता है कि बार-बार यह बात कही जाती है कि देश बहुत आगे निकल गया है। देश के कई राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद राजनीतिक-सामाजिक विश्लेषक भी यह कहते अक्सर दिखते रहे हैं कि अब विकास के मुद्दे पर ही जनता को प्रभावित किया जा सकता है और चुनाव जीता जा सकता है। विकास ही किसी नेता को बड़ा नेता बनाएगा। अभी पिछड़े राज्यों के अगुवा उत्तर प्रदेश के लिए यह जरूरी है कि यहां धार्मिक या जातिगत आधार पर नहीं, बल्कि विकास के आधार पर मुद्दे तय हों। अब जबकि अदालत ने प्रामाणिक तौर पर अयोध्या को राम जन्मभूमि मान लिया है तो इसे आधार बनाकर समृद्ध अयोध्या और उसके जरिए अयोध्या से सटे उत्तर प्रदेश के कई जिलों के विकास की नई कहानी लिखी जा सकती है।

(लेखक : टीवी पत्रकार हैं)


(साभार :  दैनिक जागरण, 8/10/2010)

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