Saturday, October 30, 2010

अयोध्या में भारत जीत गया

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
  
30 सितम्बर 2010 को अयोध्या में राम जन्म स्थान को लेकर हुए विवाद का अंत हो गया। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि जिस स्थान पर इस समय श्रीराम विराजमान है वही उनका जन्म स्थान है। न्यायालय के अनुसार आम लोगों में इसी स्थल को जन्मभूमि स्वीकार करने की मान्यता है और न्यायालय ने इस मान्यता पर मोहर लगा दी है।

श्रीराम जन्मभूमि को लेकर यह लडाई 1528 को प्रारम्भ हुई थी। जब विदेशी अक्रातांओं ने राम जन्मभूमि पर बने मंदिरों को गिराकर वहां एक विवादस्पद ढ़ांचा खडा कर दिया जिसे कालांतर में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया। विदेशी आक्रांताओं के इस आक्रमण में भारत पराजित हो गया और राम मंदिर की रक्षा नही कर पाया। लेकिन भारतीयों के लिए राम जन्मभूमि को मुक्त करवाने की यह लडाई उसी समय शुरू को गई थी। विभिन्न काल खण्डों में इसके स्वरूप बदलते गये परन्तु भारतीयों ने पराजय को कभी मन से स्वीकार नही किया और संघर्ष जारी रखा।

60 साल पहले यह संघर्ष न्यायालय में पहुंच गया। सारे भारत की निगाहें न्यायालय के निर्णय पर टिकी हुई थी। यह कुछ उसी प्रकार का मंजर था जैसा 1528 में रहा होगा। बाबर की सेनाएं अयोघ्या में आगे बढ़ रही होगी लोग उनको रोकने के लिए लड़ भी रहे होंगे और यह सोच भी रहे होंगे कि मंदिर बचेगा या नहीं बचेगा। भारत जीतेगा या बाबर जीतेगा। उस वक्त भारत हार गया बाबर जीत गया और मंदिर ढह गया।

आज पूरे 492वें साल बाद सारे भारत की निगाहें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ बैंच की ओर लगी हुई थी। प्रश्न वही पुराना था 1528 वाला। राम मंदिर बचेगा या नहीं बचेगा। लेकिन इस बार भारत जीत गया और इलाहबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि रामलला वहीं विराजमान रहेंगे और वहीं उनका जन्म स्थान है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सही कहा है कि इस निर्णय में न किसी हार है न किसी की जीत है। दरअसल राम मंदिर का मसला हिन्दू या मुसलमान के बीच विवाद का मसला है भी नहीं, इसलिए किसी एक की जीत या दूसरे की हार का प्रश्न ही कहां पैदा होता है। यह वास्तव में भारत की जीत है। और विदेशी आक्रांताओं की विरासत की हार है।

तीनों जजों ने अपने निर्णय में कहीं न कहीं कहा की बाबरी ढांचा हिन्दू मंदिर के भग्नावशेषों पर खडा किया गया था। इतना ही नहीं बाबरी ढांचा बनाने के लिए हिन्दू मंदिरों के मलवे का प्रयोग भी किया गया। न्यायालय के एक न्यायाधीश ने तो यह तक कहा कि मंदिर को गिराकर उसके स्थान पर बनाया गया ढांचा इस्लामी कानून के अनुसार ही मस्जिद नही हो सकता। दुर्भाग्य से सुन्नी वक्फ बोर्ड मंदिरों को गिराकर विदेशी आक्रांताओं द्वारा खडे किये गये ढांचे की विरासत के लिए न्यायालय में लड़ रहा था। न्यायालय ने बोर्ड के इस दावे को खारिज कर दिया। इसलिए यह निर्णय न हिन्दू के पक्ष में है न मुसलमान के पक्ष में है यह भारत के पक्ष में है। 2010 में भारत जीत गया है और बाबर हार गया है। 1528 में बाबर जीत गया था और भारत हार गया था।

न्यायालय के इस निर्णय का भारत के लोगों ने एक स्वर में जिस प्रकार स्वागत किया है। उससे सिद्ध होता है कि मंदिर को लेकर लोगों में न तनाव है और न विवाद। अलबता वोट बैंक की राजनीति करने वाले कुछ लोग तनाव पैदा करने का प्रयास अवश्य करते रहते हैं लेकिन इस बार उन्हें भी सफलता नही मिली। देश के आम मुसलमान ने जिस प्रकार इस फैसले का स्वागत किया है। उससे संकेत मिलते है कि यह निर्णय राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को मजबूत करने वाला सिद्ध हुआ है।

वास्तव में जो लोग राम को भगवान नहीं स्वीकार करते वह भी इतना तो मानते ही हैं कि राम हमारे पुरखों में शामिल हैं। हमारा मजहब कोई भी हो, चाहे वैष्णव पंथी, चाहे शैव पंथी, चाहे मोहम्मद पंथी, चाहे कबीर पंथी या फिर नानक पंथी, राम के अस्तित्व से कोई इन्कार नहीं करता है। बाबर इस देश में किसी का पुरखा नहीं है, चाहे वह हिन्दू हो चाहे मुसलमान। ऐसी स्थिति में भारत राम की विरासत की रक्षा करेगा न की बाबर की विरासत की। न्यायालय ने भी राम की विरासत के पक्ष में ही निर्णय दिया है। इस निर्णय को आधार मानकर सभी मजहबों के लोगों के बीच जो सद्भावना पैदा हुई है उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। अब जब न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है कि यही स्थान राम जन्मभूमि है और रामलला अपने उचित स्थान पर विराजमान हैं तो उस स्थान को और सुन्दर बनाने एवं भव्य रचना का निर्माण करने से कैसे मना किया जा सकता है।

इस मुकदमें में तो रामलला स्वयं वादी थे और न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय दिया है। अब जब राम न्यायालय में जीत चुके हैं। तो क्या समस्त भारतीयों का, चाहे वे हिन्दु हों या मुसलमान, कर्तव्य बनता है कि राम के लिए भव्य मंदिर का निर्माण करें।

न्यायालय ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है। और उसने विवादित स्थान को राम की जन्मभूमि करार दिया है। अब भारत सरकार की बारी है। भारतीय संसद अप्रत्यक्ष रूप से सभी भारतीयों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए भारत सरकार को चाहिए की वह संसद में सर्वसम्मति से राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए विधेयक बनाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे। महमूद गजनबी द्वारा ध्वस्त किए गये सोमनाथ मंदिर के पुनःनिर्माण के लिए ऐसा ही प्रस्ताव संसद ने पारित किया था। जो काम गजनबी ने सोमनाथ में किया था वही काम कालान्तर में बाबर ने अयोध्या में किया। जिस रास्ते से सोमनाथ मंदिर का पुनःनिर्माण हुआ था उसी रास्ते से अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए। इसके रास्ते में जो रूकावटे थी उन्हें इलाहबाद उच्च न्यायालय ने अपने 30 सितम्बर के निर्णय से दूर कर दिया है।

यदि अब भी भारत सरकार इस मामले पर हक्लाने लगेगी तो इसका अर्थ होगा कि भारत न्यायालय में तो जीत गया है लेकिन भारत सरकार के हाथों ही हार रहा है। आशा है कि भारत सरकार कम से कम भारत को हराने का काम तो नहीं करेगी। यदि ऐसा होता है तो इससे स्वतः सिद्ध हो जाएगा कि भारत सरकार के भीतर अभी भी ऐसा गिरोह है जिसकी रूचि राम की विरासत में नहीं, बल्कि विदेशी आक्रांता बाबर की विरासत मे ज्यादा है।

मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने ठीक ही कहा है कि पितृपक्ष में न्यायालय ने भारत के एक पुरखे के पक्ष मे निर्णय दिया है। देखना है भारत सरकार इस पितृपक्ष में किसके साथ है- राम के या बाबर के।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)


(साभार : http://www.vhv.org.in, 13 अक्टूबर, 2010)

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